Saturday, July 30, 2016

हिन्दी हास्य व्यंग्य संकलन (Hindi Hasya Vyangya Sankalan) - श्रीलाल शुक्ल, प्रेम जनमेजय (editiors: Srilal Shukla, Prem Janmejaya)




भारतेन्दु काल के पहले का काल मूलतः कविता पर केन्द्रित है। 
उसमें हास्य-व्यंग्य की स्फुट रचनाओं का सर्वथा अभाव नहीं है, पर वहाँ हास्य के स्रोत और स्वरूप उतने वैविध्यपूर्ण तथा उन्मुक्त नहीं हैं जितने कि वे आधुनिक साहित्य में पाये जाते हैं।
 भारतेन्दु काल से लेकर आज तक के हिन्दी व्यंग्य की गुणवत्ता के विकास का ग्राफ चकित करने वाला है। 
इस दीर्घ अन्तराल में हिन्दी व्यंग्य के कई आयाम खुले। कई पीढ़ियों के प्रतिभा संपन्न रचनाकारों ने अपने सृजन से इस विधा को पुष्ट किया। 
हिन्दी हास्य व्यंग्य का यह संकलन इस विकास यात्रा की बानगी है। 
इस काल के प्रायः सभी प्रमुख लेखकों, हर पीढ़ी और रचनाधारा के वैविध्य का प्रतिनिधित्व हो सके तथा पाठकों के सामने हिन्दी हास्य-व्यंग्य की एक मुकम्मल तस्वीर प्रस्तुत हो सके - संपादकों ने इसका पूरा-पूरा ध्यान रखा है। इसके संपादक श्रीलाल शुक्ल तथी प्रेम जनमेजय हिन्दी हास्य व्यंग्य के क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं। 
(Source:  Book Cover)
My Rating: 3 out of 5

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